ऊँची उड़ान
ऊँची उड़ान
ऊँची उड़ान भर, बादल पार जा पाता।
सुरभित वसुंधरा लख, मन हर्षाता।
चाह नहीं, मरुभूमि खारे सागर की,
हरितिमा में, बस रम कवि जाता।।
धरती तो पाई, आसमान भी पा जाता।
दो चार तारे तोड़, साथ ला तो पाता।
माना धरा पर उतरा, तुझ सा चाँद एक,
तारे का उपहार दे, दिल तेरा पाता।।
प्रेम सुधा बरसे, नफ़रत का नाम नहीं होता।
मीठे शब्दों की फसल, कटु नहीं कोई बोता।
आह्लाद हो, आह का नाम न हो धरती पर,
आसमान से मानव फरिश्ता बन उतर रहा होता।।
नेकी का माहौल, बदी का नाम न होता।
प्यार भरा घर संसार हमारा होता।
ललच कर बादल भी आसमान से,
उतर खिड़की से तक हंस बरसता।।