उसे मोहब्बत ही नहीं हैं...!
उसे मोहब्बत ही नहीं हैं...!
उसे बेवफ़ा कहूँ या ग़ैर जिम्मेदार
मुझे मिलने को बुला के, ख़ुद आई ही नहीं
मुझे ये समझ में ही नहीं आता,
उसे मोहब्बत ही नहीं है मुझसे
या मेरी सूरत उसे भायी ही नहीं....!
दिन-रात यही मैं सोचता रह गया
फिर भी बात मुझे समझ आयी ही नहीं,
ये दर्द है दिल का गहरा,
ऐसी चोटे मैंने कभी खायी ही नहीं,
मुझे ये समझ में ही नहीं आता
उसे मोहब्बत ही नहीं हैं मुझसे
या मेरी सूरत उसे भायी ही नहीं....!
दवा-दुआ कुछ काम ही ना आये
ग़म का बादल सर पर मंडराए
पल में हंसे,पल में रोये
पल में मुस्कराये
वो हरजाई निकली अपने वादे निभाई ही नहीं
उसे मोहब्बत ही नहीं हैं मुझसे
या मेरी सूरत उसे भायी ही नहीं....!