उस सर्द मुलायम रात में
उस सर्द मुलायम रात में
लापता हूँ कब से मैं उन पलों के दरमियां
जो बिताये थे कभी साथ में।
याद है अब भी जाड़ों में वो घंटों तलक बतियाना
उस सर्द मुलायम रात में।
ये पल छिन ऋतु महीने बरखा बहार
अब भी होते हैं पर तुम नहीं होती साथ में।
लापता हूँ कब से मैं तुम्हारी उन नर्म मुलायम साँसों में
जो घोल दिये थे तुमने मेरे जज्बात में।
वो तीज त्यौहार सावन के झूले लगते हैं हर बरस
पर तुम नहीं होती हो उस सावन की बरसात में।
तुम्हारी आवाज़ गूंजती है अब भी मेरे कानों में
और मैं लापता हूँ कब से तुम्हारे उन्हीं ख्यालात में।

