उम्र के पड़ाव
उम्र के पड़ाव


चाहतों का फ़साना मैं ले के चला था
तेरे हर उम्र के पड़ावों से गुजरा था
चाहतों का...
संग मेरे वो हमेशा रहती थी
उसकी खुशबू मेरे बदन में रहती थी
तेरी काली जुल्फों के सायों में सोया था
चाहतों का...
हाँ याद हैं मुझे सारे वो दिन
कितने खूबसूरत रहते थे दिन
उन पलों को मैंने अपना बनाया था
चाहतों का...
वक़्त में मैं था, तू भी था
होश में मैं था, तू भी था
तेरे आगोश में प्यार से लिपटा हुआ था
चाहतों का...
इश्क की नदी उफनने लगी थी
तू मेरे इश्क में खिलने लगी थी
तेरी झील सी आँखों में खोया था
चाहतों का...
उम्र के पड़ाव बीतते गये, हम जीते गये
तेरी चाहत में उठते गये, हम गिरते गये
सुबह उठा तो देखा, ये सिर्फ एक सपना था
चाहतों का फसाना मैं ले के चला था