उम्र ढल गई तो क्या.....
उम्र ढल गई तो क्या.....
उम्र ढल गई तो क्या हुआ
अभी भी साँसें बाकी हैं,
जीवन पथ पर चल रहे हैं
मौत से बाजी नहीं हारी है।
माना जिंदगी को जिंदगी
की तरह कभी जिया नहीं,
फासले खुद से खुद के
दरमियाँ थे इतने कि कभी,
खुद से खुद मिला ही नहीं।
खैर वो बीते कल की बात रही,
जिम्मेदारी निभा चुके बहुत
अब एक नई शुरुआत सही,
उम्र के इस पड़ाव पर
कुछ करने को ठाना है ,
जिंदगी को अभी तो पहचाना है,
खुशियाँ बाँटकर मुस्कुराना है।
मेरे जाने के बाद याद करें लोग,
मुझे वही किस्सा तो बनाना है ।
समाज को कभी कुछ दिया ही नहीं,
अनुभव काम आ सके किसी के मेरा,
चाहे फिर कोई बोले बूढ़ा सनकी है
तो यही मेरी पहचान सही।