STORYMIRROR

Suchismita Sahoo

Tragedy

4  

Suchismita Sahoo

Tragedy

उम्मीद

उम्मीद

1 min
172

मैं

उम्मीद पे विश्वास करती हूँ

उम्मीद पे जीती हूँ

हारने के बाद भी नाउम्मीद हो 

उठके फिर से लड़ती हूँ

आज बहुत दिनों के बाद

पता नहीं क्यूँ 

ऐसा लग रहा

मैं बुरी तरह से

हार गयी हूँ

उठके लडने की और

ना शक्ति है, ना क्षमता है मुझमें

ना कोई इच्छा

जीतने की भी कोई

उम्मीद नहीं है मुझमें

खैर!

ए सब कान्हा जी की

इच्छा मानकर

बस आगे बढ़ने का

एक छोटे से प्रयास

में लगना है अब।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy