उम्मीद की राहें
उम्मीद की राहें
कभी तो
मैं नन्ही जान, एक बच्ची,
होती हूँ शिकार किसी हैवानियत की
और कभी
मैं किसी की बन - जान और प्यार ,
होती हूँ शिकार उसकी हवस की
कभी
मैं अर्धांगिनी बन - बनती हूँ शिकार,
घरेलू हिंसा और दहेज के लोभ की
और कभी
उनके नए प्यार की
बन शिकार, सेहती हूँ उपेक्षा
फिर कभी
मैं तलाकशुदा बन
अकेली जीती हूँ जिंदगी
कभी
मैं औलाद के मोह में
जीती हूँ बेचारगी की ज़िंदगी
तो कभी
सेहती हूँ मैं
अपमान और शोषण
उत्पीड़न और कभी
लाचारगी की जिल्लत भी
फिर भी....
ढूंढती हूँ मैं
उम्मीद की राहें
आने वाले कल में
अपनी
एक नई पहचान के लिए,
स्वाभिमान और आत्मसमान
के साथ
जीने के अधिकार के लिए
ढूंढ़ती हूँ मैं
राहें उम्मीद की
उम्मीद की राहों पर
एक जगमगाते नयें सवेरे के लिए ......