उदासी
उदासी
उदासी है मेरे अंतर्मन में पर लबों पर मुस्कान रखती है
तन्हा है बिल्कुल भीतर से मगर महफ़िल को सजाती है
ज़ख़्म गहरे है दिल में पर औरों की हमदर्द बन जाती है
चिल्लाती है रूह मेरी मगर ख़ामोशी से सब सह जाती है
हर बार सब आहत करते है पर सबको माफ़ कर देती है
दुःख के बिस्तर पर भी ख़ुशियों की चादर ओढ़ लेती है
अक्स भी कहीं खो गया है मगर 'ज़ोया' पहचान ढूँढती है
कई बार हुआ अपमान बस अब स्वाभिमान को बचाती है।