फुटपाथ पर साहित्य
फुटपाथ पर साहित्य
साहित्य की आज
क्या हालत हो गई है
शब्द बाजार में
सब्जी के भाव मिल रही है
हर चीज की कीमत
ऊँची हुई बाजार में
बस हिन्दी की कीमत
गिरती ही जा रही है
लोगों की भावना
शायद खत्म हो रही है
इस लिए तो घर घर से
संस्कार धुँधली हो रही है
कवियों की भावना हो
या लेखकों का विचार
मोबाइल के दैत्य
उन सबको गिल रहे है
देश पहुँच तो गया चाँद पर
शिक्षा पीछे ही रह गई है
जैसी हालात गरीबी की
फुटपाथ पर हो रही है
वैसी हालत आज यहाँ
साहित्य की हो रही है
समझो ऐ मानव
आज ये क्या हो रहा है
किसी की भावना
किसी के आंसू
किलो के भाव बिक रही है
