तू वंदनीय है
तू वंदनीय है
दो दिलों के बीच पैदा हुई दूरी को
विज्ञान कभी नाप नहीं पाया..!!
चलो एक ओवरब्रिज बनाते है ,
तुम्हारे दिल से मेरे दिल तक
एक स्वच्छ नदी की धारा में,
मैंने देखा है रूप तुम्हारा
कितना निर्मल, कितना पावन
बहता जीवन, झरता सावन
तुम ब्रज में छुपी राधा सी,
स्वच्छ चांदनी आभा सी
तुम चंदन में हो खुशबू जैसी
मेहंदी सी हाथ में रची हुयी
तुम आसमान विस्तार लिए
अपनी बाहें फैलाए
तुम सुर की देवी सरस्वती
जग में ज्ञान दीप जला जाए
तुम सागर सी गहरी,
शोख नदी सी चंचल हो
तुम ममता से भरी हुई
किसी मां का आंचल हो
सुंदर है कितने नयन तुम्हारे
सारे जग का प्यार समा जाए
जैसे किसी भटके मांझी को
अचानक किनारा मिल जाए
होंठ तुम्हारे रस से भीगे
मधुरस के छलकते प्याले हैं
है जुल्फ तुम्हारे नाग सदृश
सौंदर्य के सब रखवाले हैं
है भाव तुम्हारे कितने पावन
जीवन को देते नवजीवन
है प्यार तुम्हारा अलबेला
अल्हड़ शिशुओं से सजा मेला
ह्रदय तुम्हारे करुणा भरे
सारे जग को अपना कर जाएं
जैसे कोई मां थपकी देकर
नवजात शिशु को सहलाए
तेरा सुंदर साथ सलोना
जैसे बादल में हो चांद का खोना
फिर -फिर छुपना, फिर -फिर मिलना
तू वंदनीय है तू मेरी वंदना है
जग को आलोकित कर देना
तू पूजनीय है, पूजा है
तुझसा कोई और न दूजा है
तुम अर्थ, धर्म तुम काम, मोक्ष
तुम जीवन की आशा हो
कितना अधूरा मैं, कितना अकिंचन
शायद, तुम ही मेरी परिभाषा हो !

