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GOPAL RAM DANSENA

Abstract Romance

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GOPAL RAM DANSENA

Abstract Romance

तू सलामत कहीं तो होगी

तू सलामत कहीं तो होगी

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बिछड़ गये उदासी नज़रों में

सोचता हूं उन्हें गम नहीं तो होगी I

सोचता हूँ ,तू सलामत कहीं तो होगी I

सोचता हूँ ,तू सलामत कहीं तो होगी I

हृदय चीरती वे निगाहें

दिल की व्यथा कह न पायी

जब मिले खामोश रहे

होंठ तब क्यों कांप कर थर्राये

हम रोक लेते हैं आंसू अपने

उनके आंख से आंसू बहे तो होंगेI

सोचता हूँ ,तू सलामत कहीं तो होगी I

सोचता हूँ ,तू सलामत कहीं तो होगी I


जब इश्क है गुनाह यहां

तो ये चलन क्यों है

दो इश्क करने वाले का

अरमान दलन क्यों है

हम उठा लेते हैं सर जमाने के आगे

वे झुका सर सब ताने सहें तो होंगे

सोचता हूँ ,तू सलामत कहीं तो होगी I

सोचता हूँ ,तू सलामत कहीं तो होगी I 


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