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तू ही तू है

तू ही तू है

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तू ही तू है मैं कहाँ,

तू जहां है मैं वहां,

ये दास्तां-ऐ-प्यार है,

या प्यार का इक़रार है।


मैं ख़ुद से ही अनजान थी,

एक अधूरी पहचान,

थी भटकती राह में मैं,

नाम में गुमनाम थी,


तुमने ही पहचान दी,

मुझको बताया मैं हूँ क्या,

तू ही तू है मैं कहाँ,

तू जहां है मैं वहां।


रोशनी थी मैं मगर,

ख़ुद ही अंधेरा थी गहन,

अस्तित्व ना कोई मिला,

अज्ञानता में थी मगन,


तुमसे मिलकर ही सजी मैं,

रोशन हुआ मेरा जहां,

तू ही तू है मैं कहाँ,

तू जहां है मैं वहां।


कोस कई चलती रही मैं,

मंज़िल ना थी मुझको पता,

तुम मिले तब ही लगा कि,

ध्येय अब तो मिल गया,


पूर्णता दी तुमने मुझको,

पूर्ण ये जीवन किया,

तू ही तू है मैं कहाँ,

तू जहां है मैं वहां।


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