तू है कि नहीं
तू है कि नहीं
कुछ पल जो खुद के साथ बिताया
यह समझ आया कि तू अब भी है मुझमें बहुत सारा,
जब झांका गौर से खुद के अंदर
चारों ओर दिखा यादों का नज़ारा।
यूँ तो महीने बीत गए आंखों में आंखें डाल बातें कर,
यूँ तो रातें बीत गयी तेरे संदेश का इंतजार कर
पूछती हूँ खुद से कई बार, तू है कि नहीं अब ज़िंदगी में
खोजती हुई हर बार, खटखटा देती हूं तेरा द्वार,
कि कुछ बाकी है क्या इस दिल की लगी में?
ना समझे तू मेरी कशमकश, ना समझे तू मेरी पीड़ा
तुझे याद करूँ पल पल तुझमें लीन होकर, बन के तेरी मीरा।
एक बार तो बस बता दे, एक बार तो अंदर झांक ले, एक बार फिर सोच ले,
में हूँ कि नहीं तेरी ज़िंदगी में, तू है कि नहीं मेरी ज़िंदगी में?

