ज़िद्दी दिल
ज़िद्दी दिल
हाँ एक सपना देखा था मैंने,
कुछ नाम कमाने का, कुछ छाप छोड़के जाने का,
क्यों आज लगता है कि ये सपना कहीं पीछे छूट रहा है,
क्यों आज लगता है कि खुद से खुद का साथ छूट रहा है।
आज जहां मैं खड़ी हूँ, क्या यही पाना था मुझे?
या फिर कहीं न कहीं ,मैंने भी समझौता कर लिया है।
दिल से एक आवाज़ बार बार आ रही है,
समझौते की ज़िंदगी भी कोई ज़िन्दगी है क्या जनाब?
उठ जा तू, कर खुद पे विश्वास, होगा सच
जो देखा है तूने ख्वाब।
वो सपना हक़ीक़त कर, खुद पर हुक़ूमत कर।
याद रखें तुझे आनेवाली पीढियां,
इतिहास में रची हो तेरी कहानियां।
खुद से फिर खुद को मिला, जीने का ढंग सबको सिखला।
सुन रही हूँ ये दिल की पुकार,
पाउंगी वो जो है मेरी दरकार,
वक़्त के साथ जंग नही, वक़्त को साथ लेकर चलूंगी,
दुश्मन भी तालियां बजाएंगे, ऐसे मुक़ाम हासिल करूँगी।
कर लिया है खुद से वादा, पत्थर से भी मज़बूत इरादा,
ना थोड़ा कम , ना थोड़ा ज्यादा।