उम्मीद
उम्मीद
बह रहा है समय रेत सा, जानती हूँ
चारों तरफ कोहरा है, धुंधली है मंज़िल, यह भी मानती हूँ
मगर लालटेन सी उम्मीद अब भी है जवान
जो रोशनी से हटाएगी यह सफेद धुआँ
रेत को कैद कर के मन के समुन्द्र में,
कलाई से बांधा है समय तो जाएगा कहाँ
आंखों के सामने मंज़िल है तो निशाना साधने से क्या डर
धनुष बाण की तालमेल हो तो पार हो जाएगी यह डगर
ज़िन्दगी की जंग में गिरना फिसलना जायज है
गिरके संभालना और खुद पर विश्वास ही खुद का साहस है!चारों तरफ कोहरा है, धुंधली है मंज़िल, यह भी मानती हूँ