कल, आज और कल
कल, आज और कल
एक तरफ है बीते हुए कल का पछतावा और
दूसरी ओर है आने वाले कल का डर,
इनके बीच जो थोड़ी सी ज़िन्दगी है
उसे क्यों दे रहा है तू कुचल ?
जो खुशी तुझे आज में मिल रही है
क्यों सोचता है कि काश बीते हुए कल में मिलती,
क्यों सोचता है कि कल मिलेगी या नही मिलेगी ?
अगर इतना सोचेगा, तो जियेगा कब ?
जो गलतियां तूने की थी पहले,
उनसे सीख लेके आने वाले कल को सुधार,
अगर एक अध्याय खत्म हुआ है तो
दूसरे अध्याय से कर एक नई शुरुआत,
न पड़ने दे उसपे बीते हुए कल की छाप,
तभी बनेगी कुछ बात,
बीते हुए कल के पछतावे से अपने आज को मत खो,
क्योंकि जो आज है वो क्या पता कल हो न हो।
