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Vijay Kumar parashar "साखी"

Abstract

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Vijay Kumar parashar "साखी"

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तुनकमिजाजी

तुनकमिजाजी

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ज्यादा तुनकमिजाजी मत कर

अपने व्यवहार को तू ठीक कर

खुशियां तुझे यूँ ही मिल जायेगी,

पहले भीतर क्रोध को खत्म कर


हर स्वप्न तेरा अवश्य पूरा होगा,

पहले लोगों से ईर्ष्या खत्म कर

ज्यादा तुनकमिजाजी मत कर

अपने आप को जिंदादिल कर


अमीर होकर भी क्या कर लेगा?

गर सब निंदा करते दरिया भर

इससे अच्छा तू दिल जीता कर

हृदय को पहले तू अमीर कर


ज्यादा तुनकमिजाजी मत कर

अपनी वाणी में तू मधुरता धर

लोगों के दिल स्वतः शीतल होंगे

पहले तू अपने में परिवर्तन कर


शहंशाह वो नहीं देश जीतता है,

असल राजा तो दिल जीतता है,

तू साखी परोपकार के कर्म कर

पत्थर पिघलेंगे एक दिन तर-तर


देखते है, यह निराशा के बादल 

कितना जलाते है, तेरा यह घर

आशा की किरणों के पकड़ पर

बीतेगी रात, आयेगा भोर प्रहर


ज्यादा तुनकमिजाजी मत कर

अपने व्यवहार को तू ठीक कर

एक दिन बनेगा तू भी सफल नर

मिलेगा तुझे भी सबका स्नेह कर


जितना झुकेगा कोई चंदन सर

उतना खुशबू फैलाएगा वो तरुवर

ऐसे झुककर चलता जो कोई नर

खत्म न होता कभी उसका असर



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