तुमने कहा था
तुमने कहा था
तुमने कहा था
तुम यहीं रहो
पर रहो मेरी प्रतीक्षा में
क्योंकि
तुम जानते थे।
यह अनिवार्य है
कि मैं करूँ
प्रतीक्षा तुम्हारी
और मैं वहीं बैठी रही
तुम्हारे इंतज़ार में।
फिर बहुत देर बाद
शायद कई दिनों के बाद
वर्ष बीता और फिर
कई वर्षों के बाद युग।
दिन के बाद वर्ष बीतते रहे
और वर्षों के बाद युग
इस बीच वह छोटे-छोटे पौधे
जो लगाए थे हमने
बतौर अपने प्यार की निशानी।
हो गए विशाल वृक्ष
और अन्त में
जैसे समुद्र की लहर
टूट पड़ती है
किनारे पर आकर
पर तुम जानते थे शायद।
समुद्र का
निर्दयी होना ही तो
उसका अच्छा गुण है
न जाने कितनी लहरों के
जीवन टूट गये हैं।
उसके अनिश्चित स्नेह की
प्रतीक्षा में।

