तुम्हें पाने की तमन्ना नहीं खोने का डर
तुम्हें पाने की तमन्ना नहीं खोने का डर
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तुम्हें पाने की तमन्ना नही खोने का डर।
बस यूँ ही गुज़र जाये जिंदगी का सफर ।।
जलता रहा था दीया तेज़ आंधियों में ,
अंधेरे को चीरकर बसा प्रेम का नगर।।
क्यों समझ न पाये दबे जज़्बात दिलों के
बरसाते रहे महज अल्फ़ाज़ का कहर। ।
फ़िजा भी महकने लगी औ' खिल गयी कुदरत
तेरे आने की मिली जब हवा को खबर।।
सुलग रहा भीतर धुआं याद की आंच से
चिंगारी बनी "पूर्णिमा "नभ को चूमकर।।