तुम्हें छू कर हवाएं
तुम्हें छू कर हवाएं




तुम्हें छू कर हवाएँ जो मुझ तक आती हैं
सोंधी सी खुशबू में एक पैगाम लाती हैं
तुम्हारी ही तरह कभी बातें नहीं करती मुझसे
बस मेरी साँसों के स्पंदन में घुल सी जाती हैं।
फिर होता है कुछ ऐसा
भोर तुम्हारे आंगन में किरणें बिखेरती है
मणिकर्णिका की भांति दमकती हूँ मैं यहाँ
तुम्हारे खेतों में जब ओस की बूँदे चमकती हैं।
निखर उठता है मेरा आभामंडल यहाँ
इंद्रधनुष निकलता है तुम्हारी छत पर
सतरंगी हुई जाती हूँ मैं यहाँ
तुम्हारी मुंडेर पर जब होता सूर्यास्त।
कसुमल रंग जाते हैं मेरे गाल यहाँ
रात पसरती है तुम्हारे बिछोने पर स्याह हो कर
मेरा मन श्याम वर्ण पर्याय हो जाता यहाँ
कुछ यूं एक और दिन बीत जाता मेरा।