तुम्हे बहुत जल्दी थी......
तुम्हे बहुत जल्दी थी......
तुम्हे जल्दी बहुत थी और हम को धीरे धीरे आदत थी सफर तय करने की
तेरी इस जल्दबाज़ी में हम पीछे रह गए और तुम बहुत आगे हमसे निकल गए
पैसा तो तुमने बहुत कमा लिया पर रिश्ते पीछे रह गए सब तुमारे
हमने पैसा नही कमाया पर फिर भी हम रिश्तो की दौलत से अमीर हो गए.....
फर्क तुममे हममें बस इतना सा था कि तुम पैसो के पीछे पीछे भागने लगे
और हम रिश्ते निभाने में मसरूफ रहे पैसा कमाते कमाते तुम रिश्ते निभाना भूल गए
पैसा भी फिर तुम से दूर हुआ और रिश्ते भी दूर हुए दोनो रिश्तो पैसो की दौलत से तुम
मरहूम हुए,
होश तुम्हे जब आया तो तन्हाइयों के सिवा ना कुछ बचा सोच में पड़ गए कि ये क्या हुआ.....
भूल इंसान से ही होती है खुदा कभी कोई भूल करता नही देता है वो इंसान को मौका,
अब ये इंसान पर है कि वो अपनी भूल को कैसे और किस तरह सुधारे और अपनी गलती स्वीकारें,
जो भूल अपनी सुधार ले भूला भटका वो इंसान सुबह का शाम को लौट कर घर को आ जाये,
अपना लेते है सब उसको उसकी भूल को भुलाकर हँसी खुशी कर लेते स्वागत उसका ......
ये ही तो जीवन है ये ही जीवन की रीत है जिंदगी जरा तू थोड़े धीमे से चल करने है कई काम हमको।