तुम्हारे साथ का वो सफ़र
तुम्हारे साथ का वो सफ़र
जीवन के इस अंतिम पड़ाव में,
ज़रूर धुंधली हो चुकी है मेरी नज़र,
पर आज भी इनमें चमक आ जाती है,
जब तुम्हारे आने की आती है कोई ख़बर।।
लेकिन बस ख़बर ही आती है,
तुम नहीं क्या इतने हो गए हो व्यस्त,
मायूस हो जाती है मेरी ये आँखें हर रोज,
जब ढलती है ये शाम, सूरज होता है अस्त।।
बंद करता हूंँ जब भी पलकों को,
याद आते हैं, तुम्हारे साथ के वो पल,
वो तुम्हारा उंँगलियों को थाम कर चलना,
वो तुम्हारा मुझसे कैसे जिद करना हर पल।।
लौटता था जब भी मैं शाम को घर,
तुम्हारा चेहरा देख थकान भूल जाता था,
पापा कह कर जब तुम मुझको पुकारते थे,
चेहरा तुम्हारा मासूमियत से खिल जाता था।।
कितना भाता था मुझे घोड़ा बनाना,
मेरे कंधों पर लटक कर खूब मस्ती करना,
कितना सुखद और प्यारा लगता वो तुम्हारा,
कहना कि पापा आप जल्दी से घर आना जाना।।
अब तो रहता हूंँ घर पर ही पूरा दिन,
पर तुम ही तो मुझसे दूर बहुत चले गए हो,
पापा शब्द सुनने को तरस गए अब कान मेरे,
बेटा क्यों तुम मुझसे इतनी दूर जाकर बस गए हो।।
फोन की हर घंटी दरवाज़े की हर आहट,
तुम्हारे मेरे पास आने का एहसास कराती है,
तुम्हें न पाकर लौट आता हूंँ मायूस मन के साथ,
फिर तुम्हारी यादों की तस्वीर दिल को तसल्ली देती है।।
वक़्त निकालो इस बार तो ख़त्म करो,
इन बूढ़ी और बेबस आँखो के इंतजार को,
एक बार तो आ जाओ मिलने की खातिर तुम,
इससे पहले कि छोड़ चला जाऊंँ मैं इस संसार को।।
तुम्हारे साथ बीता हुआ वो सफ़र,
फिर जीना चाहता हूंँ सुबह शाम दोपहर,
आंँखों में लेकर जाना चाहता हूंँ कुछ यादें सुनहरी,
लौट आओ कि तुम बिन अजनबी लगता है अब ये शहर।।