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S Ram Verma

Romance

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S Ram Verma

Romance

तुम्हारे साथ बीते सारे लम्हात

तुम्हारे साथ बीते सारे लम्हात

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ऐसे ही पलों में लगता है मुझे 

जैसे ठीक से ही सहेजे है मैंने, 

तुम्हारे साथ बीते सारे लम्हात

जब भी चाहा उन टुकड़ों को

समेट कर रखना मैंने तब 

हर वो टुकड़ा चुभ गया,

ऊँगली में मेरे और बहने लगा  

वो आँखों की कोरों से मेरे,


लेकिन जब भी याद किया 

मैंने उन लम्हों को वो लम्हे

आकर मेरे कमरे में जैसे

थिरकने लगे और कितने ही

कह कहे ठहाके लगाने लगे

और कितने ही आहटों के साये 

मेरे कमरे की खिड़की में आकर 

छुप गए जैसे,


लुका-छुपी खेलते-खेलते जाने

किस दिशा से बहने लगी वही 

प्रेम की बयार और

कमरे की छत से बरसने लगे 

हरश्रृंगार के फूल तभी तो

ऐसे ही पलों में लगने लगता है 

मुझे जैसे ठीक से ही सहेजे है मैंने, 

तुम्हारे साथ बीते सारे लम्हात !


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