तुम्हारे सामने
तुम्हारे सामने
कुछ बातें हैं कहनें की,
कैसे करूँ तुम्हारे सामने...!
कुछ ख्वाब हैं आँखों की कोर
पर, कैसे लाऊँ तुम्हारे सामने।
कुछ वादें किएँ थें तुमनें
कैसे याद दिलाऊँ तुम्हारे सामने...!
कुछ शब्द है तुम्हारी तारीफ में
कैसे गज़ल बनाऊँ तुम्हारे सामने।
कुछ रातें हैं समय से चुरायी,
कैसे लूटाऊँ तुम्हारे सामने...!
कुछ पल हैं खामोश से,
कैसे बिताऊँ तुम्हारे सामने।
कुछ दूरियाँ हैं तेरे मेरे बीच,
कैसे नजदीकियां बढाऊँ तुम्हारे सामने...!
कुछ दरख्वास्त हैं तुम से
कभी आओ ना हमारें सामने..!

