तुम्हारे घर का दरवाज़ा ..
तुम्हारे घर का दरवाज़ा ..
सबके लिए खुला है ,
ऐसा रवैया मेरे साथ क्यों नहीं करता ??
तुम्हारे घर का दरवाज़ा ,
अब मेरी बात क्यों नहीं करता ??
झांक कर देख तो लेता कौन आया है तेरी चौखट पर ,
तू खिड़की से दूर क़नात क्यों नहीं करता ??
इतनी बार बजाई है घंटी तेरे घर की ,
मेरी उंगलियां भी मुझ से पूछती है ,
के " यार ये कैसा दोस्त है तेरा ! "
गलती ना होने पर भी माफ क्यों नहीं करता ??
तुम्हारे घर पर कभी डांकां पड़ जाए
तो मैं ये चौखट भी लांघ लेता ,
डांका डालने की हिम्मत कोई कज़ाक क्यों नहीं करता !
ऐसी नफ़रत से अच्छा था के रूठ जाता तू मुझसे ,
तेरे ही आंगन से फूल तोड़कर मनाता तुझे ,
तू पहले जैसा मज़ाक क्यों नहीं करता ??