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Bhawna Kukreti

Romance

4.7  

Bhawna Kukreti

Romance

तुम्हारा प्रेम

तुम्हारा प्रेम

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अल सुबह

आंखें खोलते

कई कई बार

तुम्हें देखा है खुद को

निहारते प्यार से

मैं हमेशा अचकचा जाती हूँ

आज भी लेकिन

तुम भूलते नहीं देना

सांसों से महकता हुआ

बोसा मुझे।

रसोई में मेरा

आटा गूंथना

हो या बिस्तर की

हल्की सी सलवटें हटाना

तुम्हारा अचानक से

आकर मेरी

छोटी उंगलियों में

अपनी लम्बी उंगलियां

फंसा लेना

और धीमे से कहना

क्या यार तुम भी!

बिना बात

उलझना मुझसे

झूठ मूठ खिलाना डांट

बड़ों बच्चों से

सताना बेबात किसी पुरा

नी

भोली सी नादानी पर

फिर खुद ही कर देना

निहाल प्रेम की बौछार में

सबके बीच ।

भीड़ जाते हो

मेरे लिए बिना कुछ कहे

उठा लेते हो आसमान

मेरे किसी अपमान पे

तोड़ देते हो अहम

मिटा देते हो मुकाम

हर उस बदी का

जो बढ़ती है मेरी ओर

तुम्हारी नजर में।

प्रिय कितना भी

लिख डालूं

वह अधूरा ही पड़ेगा

अव्यक्त की रहेगा

फिर भी जो लिखूँ

तो लिख डालूं

हर बार यही प्रिय

तुम्हारा प्रेम

आधार है आशीष है

मेरे तुच्छ जीवन को ।


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