तुम्हारा अपलक निहारना
तुम्हारा अपलक निहारना
वो चाय के बहाने तुम्हारा आना
और मेरे दिल का बेचैन हो जाना
छत पर खड़े होकर
तुम्हें देखना और कभी नजरें चुराना
तुम्हारा अपलक निहारना
तो कभी हौले से मुस्कुराना
यूँ ही निगाहों का निगाहों से टकराना
और न जाने कैसे
एक दूसरे के दिल में समाना
दिल के ऐसे जुड़े थे तार
मिलता हर सन्देश बिन चिट्ठी बिन तार
न कभी हुई थी बात
न कभी हुई मुलाकात बस
अहसासों के समंदर में
गोते लगा रही थी
और उन हसीन पल को
यादों में पाल रही थी.....