कलम अब रूठने लगी है
कलम अब रूठने लगी है
शब्द हो रहे हैं मौन
इसकी टीस यहाँ
पर समझे कौन
हर शख्स को ऊपरी
आवरण दिखता है
अंदर का दर्द
तन्हाई में छलकता है
पर खुद ही दिल को ढाढ़स
बंधाना पड़ता है कि
कोई ऐसा शख्स नहीं
जो दर्द से नहीं गुजरता है
जिसने सहन की हो खुद की टीस
वो ही समझ सकता औरों की पीर
दिल तो नादान है हर किसी से
उम्मीद कर बैठता है
ये समझता है नहीं कि
जो ज्यादा अपना बनता है
वही तो दगा करता है
देखकर दुनिया की रीत
नहीं निभाना किसी से प्रीत
रास आने लगी है तन्हाई
नहीं भाती अब प्रीत पराई
सब मतलब के साथी है
मतलब से साथ निभाते हैं
कलम भी अब रूठने लगी है
जब शब्द ही हो गए मौन
तो फिर मुझे समझेगा कौन
समझाया कलम को तुम
न कभी मुझसे रूठना
क्योंकि अब तुम्हारा और
शब्दों का ही तो सहारा है
वरना इस भरी दुनिया
में हमें समझने वाला है ही कौन
तुम ही हो मेरे सुख दुख के साथी
अपना सारा वक़्त भी तुम पर लुटाती
मेरी भावना, मेरे अहसास को
तुम ही हो समझते
लफ्जों को कागज पर उतारकर
चीख भी लेती हूँ और
किसी को पता भी नहीं चलता
दिल हल्का हो जाता है......