तुम
तुम
ग़म को यूं सजदा न कर इश़्क करने वाले
सुबह होते ही उतर आयेंगे आसमां वाले।
जिनकी आंखों से न छुपते हो राज़ ऐ मैख़ाने
ऐसे आते हैं कहां अब पीने वाले।
चांद कहता है मुझे, उससे दिल न लगा
ऐसे मिलते हैं कहां मुझसे जलने वाले।
ले मैं हाज़िर हूं क़लम, देखूं तेरी सरदारी
अब भी ज़िन्दा हैं यहां कई मरने वाले।
तुम मेरे बाद सवालों पे जलवा तलब करना
हैं यहां कितने शमा जलाने वाले।
दर्द लेकर गया जब कभी मैख़ाने में
अहले ईमान मिले शराब बनाने वाले।
न सही दुनिया मगर अर्श तो मेरा है
कितने बहतर हैं ज़मीं तुझसे सितारों वाले।
ज़िन्दगी अब तो हालात पे तरस खा थोड़ा
कितने सवाल हैं मुझसे पूछे जाने वाले।
सुनते हैं तुम भी पशेमां थे असद, मुद़्दत तक
देखें जावेद को क़्या सुनते हैं दिल्ली वाले।।