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Arunima Bahadur

Action

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Arunima Bahadur

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तुम तोड़ो अब मौन

तुम तोड़ो अब मौन

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न करो तुम कोई वादे,

वादा निभा न पाओगे।

एक संकल्प ही ले लो न,

वसुधा सुरक्षित बनाओगे।

 

जैसे है तुम्हारी ये धरा,

वैसे ही तो मेरी भी है।

फिर तुम्हारा स्वामित्व,

मेरी परतंत्रता क्यों है।


तुम छोड़ मानवता को,

नर पशु बन जाते हो,

नारी को सताने में फिर,

वीभत्स हद लांघ जाते हो।


वह सिसकती, रोती नारी,

रूह की गहराइयों तक

जख्म पाती है,

पुरुष के पुरुषत्व को,

वो समझ न पाती है।


शायद नहीं हो तुम,

उन पुरुषों की कतार में,

जो नर तो नही,

शायद नर दैत्य है।


जिन्हे नही दिखती,

नारी को व्यथा,नारी का दर्द,

पर मनुष्य तो हो न,

फिर क्यों नही है तुम्हारी जुबां पर,

अन्याय का विरोध।


यदि धारण रहा यूं ही मौन,

फिर न क्षमा करेगी वसुधा,

युगों युगों तक, तेरे इस मौन को,

याद रखना,

नारी नहीं, तो तू भी नहीं है।

नारी दर्द में है,

तो खुशियां, तेरी भी नहीं है।


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