।। तुम तो कभी न थकती हो ।।
।। तुम तो कभी न थकती हो ।।
जब से तुम इस जीवन आयीं,
खुशियां सब संग अपने लायीं,
मैं जितना भी था रहा अधीर,
तुमसे ही आभा संयत आयी,
मैं बस उद्वेग रूप, तुम स्थिरता ,
मैं बस व्याकुल, तुम भावुकता,
कई बार थका और निढाल हुआ,
तेरा मुझ पर विश्वास नहीं झुकता,
हौं बस मेरे सुखद सभी सपने,
तुम जाने कितनी रातें जगती हो,
तुम तो कभी न थकती हो ।।
फूलों की खुशबू में हो तुम,
इस नीर की चंचलता में तुम,
त्याग अहम निज जीवन के,
हो बस मेरी ही दुनियां में गुम,
मुझसे पहले होती सुबह तुम्हारी,
मेरे सोने तक ना तुम लेती दम,
अपनी खुशियां मुझको देकर,
बस ओढ़ लिए सब मेरे गम,
जाने कितने बीते वसंत अब,
नित सांझ राह तुम तकती हो,
तुम तो कभी न थकती हो ।।
जाने कितने जन्मों के पुण्य रहे,
जो ये साथ तुम्हारा है पाया,
मन में ना जाने कितना है ,
पर तुमसे कभी ना कह पाया,
हर संबंध निभाने को जीवन में,
खोया कितना खुद को तुमने,
सब चढ़ते रहें मंज़िल अपनी,
तुम ने अपने सब वारे सपने,
सखी, माता, पुत्रवधु ,भगिनी,
तुम सब की कुछ ना कुछ लगती हो,
तुम तो कभी न थकती हो ।।
जो वक़्त साथ बिताया हमने,
कुछ मुश्किल और कुछ था सरल,
इस जीवन सुधा का सोपान किया,
फिर हो अमृत या फिर वो गरल,
हर पथ पर तुम सहभागी मेरी,
कभी नेत्री तो कभी हो अनुगामी,
हाथ में हर पल हाथ रहा,
हर ठोकर पर अंगुली है थामी,
इस सफर में बाधा कैसी भी रही,
तुम हरदम ही लगती हंसती हो,
तुम तो कभी न थकती हो ।।
पत्नियों को समर्पित मेरी ये रचना,
जो हर वक़्त, हर हाल में खुद को भुला कर
बस हम पतियों का संबल बन जाती हैं ।।