तुम मेरी
तुम मेरी
पैमाना, दर्पण सब सपाट से लगते
तुझे देख माटी के बर्तन भी जिंदा लगते
कल्पना हकीकत बनते विचार सत्य रचते
वास्तव में हो कोई दिव्य शक्ति तुम
तुम्हें छू मेरी साँस आज सुगंधित इत्र लगती है
कैसा चमत्कार है तेरा प्रिय
जल में धरती और धरती पे गगन सजते
चारों और की बयार करते सजदा तुम्हें
आह देख एक झलक जुल्फ बिखरे एकतरफ
बंजर भू पे भी बरसते बूंद अमरत्व के लगते है
कब तक अस्वीकार कर खुद से खुद को दूर रखोगी
आँचल में सोया सर्प के केचुए से
एक अक्स कहता जननी मेरी तुम
सृजन कर्ता मेरी तुम
सुन लो करुणा पुकार मेरी
मैं तुम्हारा तुम अर्धांगिनी हो स्रष्टि के अंत तक मेरी।

