तुम क्या गए !
तुम क्या गए !
तुम क्या गए
जीने का अंदाज़ गया
कभी लगा ही नहीं था
तुम इस तरह से
चले जाओगे !
इसलिए कि
पहले भी तुम गए थे
मगर दो बार जाकर
लौट आए थे
फिर इस बार
ऐसा क्या हुआ जो
पल ही में चले गए !
तुम्हारे जाने का
भरोसा ही नहीं हुआ
मैं यूं ही सोचती रह गई
सो रहे हो तुम !
तभी डाॅक्टर ने कहा
ही इज़ नो मोर !
ओह
तुम्हारी वो शांत निद्रा
बन गई महानिद्रा !
पांच सालों बाद भी
तुम्हारी वो मुद्रा
हर पल घूमती है
मेरी आंखों के आगे
डाॅक्टर के उन छोटे से
केवल चार शब्दों ने
तुम्हें मुझसे छीन लिया
और तुमने मेरा सब कुछ !
तुम्हारे बिना ये ज़िन्दगी
ज़िन्दगी नहीं
रह-रहकर आज भी
गूंजते हुए वो शब्द
उतरते हैं कानों में मेरे
पिघलते शीशे की तरह
ही इज़ नो मोर !
