तुम कितनी पावन लगती हो।
तुम कितनी पावन लगती हो।
बन में चलती हवा तरंगित जैसी लगती हो।
टेसू के फूलों सी तुम कितनी सुंदर लगती हो।
सूरज की किरणें भी इसके पार न जा पाती ।
उसी गहन नंदनवन की प्रति मूरत लगती हो।
जैसे एक गिलहरी खेले मौलश्री की डाली पर।
अठखेली करती तुम नटखट लड़की लगती हो।
मधुर चांदनी थिरके जैसे नदिया की लहरों पर।
आरती की लौ सी तुम कितनी पावन लगती हो।
हिम किरीट को जैसे छूती भोर किरण हो हौले से।
होठों की लरज़ी सी ऊष्मित सिहरन लगती हो