तुम कितनी अच्छी लगती हो
तुम कितनी अच्छी लगती हो
तुम कितनी अच्छी लगती हो, जब देख मुझे शरमाती हो
उन्मक पलकों की कोरों से ,मदभरी चाँदनी लाती हो।
आँखो में शहद सा घुल जाता ,तन संदल सा हो जाता है
तेरे रूप की झलकी पा पाके ,मन फूलों सा खिल जाता है
तितली के जैसी रंगीनी ,तुम हर जगह प्रिये बिखराती हो
उन्मक पलकों की कोरों से मदभरी चाँदनी लाती हो।
हर जगह शाम सी छाती है ,जब हो जाती हो तुम उदास
चम्पई को छूकर के जैसे उड़ जाती ,केसर की उसाँस
तुम उसी तरह चंचल चितवन, मेरे मन मे दर्द जगाती हो
उन्मक पलकों की कोरों से, मदभरी चाँदनी लाती हो।
बुनती हो अपनी भाषा से ,अभिलाषाओं का सघन जाल
कुछ नगमे शेर मोहबत के ,मन मे लाते तेरे सुर्ख गाल
अधखुली कमल की पंखुड़ी तुम ,अरमान जगाने आती हो
उन्मक पलकों की कोरों से मदभरी चाँदनी लाती हो।
इस जग के सब नूतन मंजर ,पुतली कर लेते है निवास
जब मीठी सी वाणी लेकर ,आ जाती प्रिये हो मेरे पास
भवरें बुलबुल के बोलो सी, इक नव गुंजन ले आती हो
उन्मक पलकों की कोरों से मदभरी चाँदनी लाती हो।
जब पास नहीं तुम होती हो ,मन में जगती है एक प्यास
मन मेरा उस पल हो जाता ,सुने खण्डर के आसपास
तब नैनो से नैनो प्यारी ,तुम उर में पुष्प खिलाती हो
उन्मक पलकों की कोरों से मदभरी चाँदनी लाती हो।