तुम कहाँ हो ?
तुम कहाँ हो ?
सुनो !
बताओ ना
जब तुम लौट कर गए मेरे पास से
क्या सच में लौट गये थे ?
या ठहरे रहे मेरे भीतर
जाने का उपक्रम-भर था
और हां !
खंगालो अपनी जेबें
मन के अहसासों की
मेरी नींद
मेरा चैन तो तुम्हारे साथ नहीं चला गया ?
तुम्हारे जाने के बाद से
लापता है यह
सुनो !
क्या तुम सच में लौट पाते हो ?
तुम्हारी खुशबू
और लरजते होठों से
टूट-टूट बिखरते शब्द
ये ही हैं मेरा बिछौना
मेरी रूह
और पौर-पौर में हो तुम
पर लौटाऊंगा नहीं ।
तुम भी तो कहां लौटा रहे हो
मेरा सुकून
मेरी नींद !