तुम ही तुम हो
तुम ही तुम हो


मेरी चारों और फैला है साम्राज्य तुम्हारी यादों का
हर जगह तुम्हारी छूअन के निशान
मेरी हर कल्पना, हर विचार में रचे बसे हो तुम
मेरी गज़ल, मेरे छंद मेरी कलम से निकलने वाले
हर अल्फ़ाज़ पे राज तुम्हारा,
मेरे मोबाइल की पटल से लेकर घर के कोने-कोने में
बिखरे है तुम्हारी यादों के अंश..!
मेरी मनोदशा के मालिक तुम
मेरे सपनों पर, मेरी धड़कन पर,
मेरी तसल्लीयों में, मेरी गमगीनीयों में,
हर आहट पर तुम रममाण बसे हो,
मेरी आस-पास तुम्हारी सुनहरी यादों
का स्वर्ग बिखरा है..!
कैसे निज़ात पाऊँ ? क्या कोई पर्याप्त उपाय है ?
या
इन्हें समेटकर ओख में भरकर पी लूँ ,
बसा लूँ रुह में अपनी और तुम सी मैं ब
न जाऊँ..!
क्यूँ की यकीन मानो
मेरे सफ़ेद आच्छादित मन के कोरे आसमान को
तुमने अपने मेघधनुषी प्यार से सजाया है मेरे भावों के
अंतराल को तेरी हर अदाओं ने भरा है..!
रब जानें कि ये कैसी अदा है तुम्हारी मैंने जिसको भी
छूआ है मेरा तलबगार हो चला है..!
मूँदकर पलकों को जब सोचती हूँ तुम्हें
छिड़ जाते है दिल में सरगम के सातों सूर
नव कल्पना से रंग जाते है अलसाये सपने
मेरी आँखों में पड़े..!
दिल की धड़कन तेज़ रफ़्तार से दौड़ती
बेकरार बनकर छटपटाती है नैन झुक
जाते है शर्मिली नयी दुल्हन से
तुम्हें सोचने भर से ये हाल है जाना
जब मिलोगे तो हायो रब्बा
क्या हाल ही कर जाओगे ॥