सर्दी की बारिश
सर्दी की बारिश
ठंड से कंपकपाते अधरों पर,
कहीं से उड़ बैठा एक भँवर,
फिर खूब रस पान हुआ,
अधरों पर भँवर का नाम हुआ।
भँवरा कली पर मर मिटा,
चख उसके चाशनी में डूबे अधर,
बार - बार अब मन मचले,
जाए भी तो जाए अब किधर ?
प्यार की बरसात ऐसी,
रोज - रोज कहाँ होती है ?
कभी भँवरा दूर होता है तो,
कभी कली की रात होती है।
आज इस अनोखे मिलन से,
दोनो करीब और आ गए,
भँवरे और कली के दिल,
हर फूल पर मंडरा गए।
अचानक से आई बरसात ने,
लिपटा दिये दोनो के तन,
उस सर्दी की बारिश में अब,
भीग रहे रूहों के मन।

