छोटी छोटी ख्वाहिशें
छोटी छोटी ख्वाहिशें
ओस की कुछ बुँदे कांच की खिड़की पे लोटती,
में कभी उंगलियों से लकीरे खींचता बनती बिगड़ती लकीरें,
उन्हें युही देखता कभी उन्हें बहने देता,
कभी लिखता कोई नाम,
कभी कोई चेहरा,
और खुद में मुस्कुराता
ये मुस्कुराते रहने की ख्वाहिशें।
खिड़की क परे चमकती बतिया कुछ धुंधली सी थी
उन्हें में यही ताकता,
कई सपने खुले,
दरवाज़ों से बहार झांकते
ओस से बहते, भागते,
ना रुकते, ना टिकते
इन सपनो को पकड़ने की ख्वाहिशें।
छोटी छोटी ख्वाहिसे
गानों पे गुनगुनाते सफर करने की ख्वाहिशें
पंजाबी गानों पे जी भर नाचने की ख्वाहिशें
यारो संग दो घूंट लगाने की ख्वाहिशें
आधी रात तक फिर संग बैठ गप्प सप्प लड़ाने की ख्वाहिशें
मैदान में भागती तरंगो सी
किसी कविता क पंक्तियों की छंदों सी
लुभाती, मचलती
छोटी छोटी ख्वाहिशें।
शहर से अलग, इसकी जगमगाहट से दूरतारे देखने की ख्वाहिशें
सर्द रातो में, धुंद के आवास में बादल से आँखमिचौली खेलते,
चंदा के प्रकाश में
मेरी बोली, तेरी हंसी
तेरी हंसी,मेरी बोली
यूँ ही मन भर हंसने की ख्वाहिशें
छोटी छोटी ख्वाहिशें,
ओस की बूंदें सी ख्वाहिशें।