तुम बस तुम
तुम बस तुम
एक वो दिन था जब तुम मिले थे,
साथ रहने के वादे तुमने ही किये थे,
तेरा हर सुख-दुःख अब मेरे साथ,
और अब ज़िन्दगी भर का हमारा साथ,
वो वक़्त भी कितना हसीं था,
जब हर पल एक दूसरे के करीब था,
हर बात में वो एक बात थी,
मेरी हर बात तुम्हारे लिए ख़ास थी,
क्यों अब उन वादों में वो बात नहीं,
क्यों हमारी कही हुई बात अब ख़ास नहीं,
क्यों हमारी तकलीफों का अब एहसास नहीं,
क्यों इन आंसुओं की अब कुछ कदर नहीं,
आखिर कैसे कर लेते हो ये तुम,
हम रोयें और तुम अपनी दुनिया में गुम,
क्या सच में अब भी वही हो तुम,
जो कहते थे तेरी हर मुश्किल में है हम,
ज़रा सी तो बात है,
कुछ तो तुम भी सुन लो ना,
ज़रा सी तो बात है,
तुम भी कभी हां कह दो ना,
क्या कभी ऐसा नहीं लगता,
की कुछ हाँथ बटा दूँ तुम्हारा,
ये छोटी सी उम्मीद ही तो होती है,
हर रिश्ते का साथ सुनहरा,
छोटी छोटी बातों का साथ,
और बिन कहे उस प्यार का एहसास,
किसी और बात का तो नहीं,
पर एक अपनेपन का एहसास।