तुम बहती मुझमें निरंतर
तुम बहती मुझमें निरंतर
तुम्हारा वजूद कायनात का नूर
पूस की कुनी धूप है
तुम्हारे गेसुओं से उठती सुगंध..
पुकारते है तुम्हारे लब जब मेरा नाम
इंद्रधनुष के सातों रंग
मेरी आँखों में उभर आते है..
ठोड़ी का तिल टिका है काला
कहता जो बुरी नज़र वाले
तेरा मुँह काला
पंक्तिबद्ध दंत अनार दाने
सप्तर्षि से चमकते है खुलते ही
दो कलियाँ लब की मुस्कुराते है..
दाएँ वक्ष पर चमकती अरुंधति
कलाई नर्म मलाई सी
उँगलियों के मध्य सुशोभित
अंगूठी में मेरी तस्वीर महकती
आहा पागल करती..
नाभि से अंकुरित होता इश्क
मेरी नासिका में उन्माद भरता
थिरकते पैरों से नूपुर की रूनझुन
बगावत है मेरे चैनों सुकून से..
कितने शोभित है सपने तुम्हारे
सागर की मौजों से
तैरते है नैन कटोरियों में..
तुम्हारी पीठ से बजती है सरगम
तुम्हारे लबों से नग्में झरते है
छलकती सुराही सी गरदन से
झाँकती है धार पानी की
जब उतरती है तुम्हारे पीते ही..
वक्त बँधा है तुम्हारे रेशमी ज़ुल्फ़ों से
जुड़े के खुलते ही टिक टिक सा
बहता है,
स्पर्श तेरा पावक कोमल
छूते ही पुष्कर में खिले सैकड़ों कमल..
बातें तुम्हारी महकती कस्तूरी
ओज भरती मेरे रोम-रोम
साथ तुम्हारा जीवन जैसा
साँसे देता पल पल
तुम बहती हो मुझमें निरंतर
जैसे साँसों की सरगम ।।

