तुम और कविता
तुम और कविता
मैं कवि नहीं पर लिखता हूं
जी हां कविता लिखता हूं
फुरसत के पलों में
शब्द को शब्दों से जोड़ता हूं
वाक्य को वाक्यों से जोड़ता हूं
फिर छंद और लय मिलते ही
बन जाती है कविता
कई बार सही शब्दों के अभाव में
रह जाती है जब पंक्ति अधूरी
वहां मैं लिख देता हूं तुम्हारा नाम
और पंक्ति पुरे होते ही
बन जाती है एक सुंदर सी कविता
और अब जब तुम नहीं हो मेरे पास
लगने लगा है जीवन अधूरा
कभी कभी सोचता हूं
जब तुम्हारे नाम लिखने मात्र से
पूरी हो जाती है जब पंक्ति अधूरी
तो तुम मेरे जीवन में होती
तो वो जीवन कितना सुंदर होता।