राम कहां से लाऊं मैं
राम कहां से लाऊं मैं
राम बनने की प्रबल इच्छा
पर भरत कहां से लाऊं मैं
राजगद्दी से चिपक न जाएं अनुज
यह भय कहां तक त्यागूँ मैं
काम क्रोध मद लोभ पाप
अहंकार सब त्याग दूंगा
पर खून की घूंट कर पी जाऊं
सिया हरण अपमान
ऐसा धैर्य कहां से लाऊं मैं
माना कि इंसानियत के नाते
मिल जाए केवट राह चलते
जूठी बेर भी खा लूंगा
शबरी के हाथों
पर अपने रजत कमल से
अहिल्या बना दूं पाहन को
वो शक्ति कहां से लाऊं मैं
राम बनने की प्रबल इच्छा
पर भरत कहां से लाऊं मैं
फिर सोचता हूं
भरत ही बन जाऊं
पर यक्ष प्रश्न है
माता कैकयी का वचन कैसे निभाऊं
एक तरफ मातृ आदेश
दूजी ओर भातृ प्रेम
फैसले के द्वंद्व में
त्याग दूं सर्वस्व निज का
ऐसा विशाल हृदय कहां से लाऊं मैं
भरत तो बन जाऊंगा
फिर प्रश्न है
राम कहां से लाऊं मैं
राम बनने की प्रबल इच्छा
पर भरत कहां से लाऊं मैं ।
प्रश्न पर प्रश्न
फिर प्रश्न
देख उधेड़बुन में मन
प्रभु राम ने संकेत दिया
कठोर जप तप संभव नहीं इस यूग में
सो असमंजस पर विराम धरो
कार्य न करना कोई ऐसा
जिसमें निहित हो हाय अहो
हो सके तो पोंछ देना आंसू
असहाय जरुरतमंद को
जा इतने में ही तुम राम भयो।