इसलिये वो शायद डरते हैं
इसलिये वो शायद डरते हैं
तारीफ नहीं करते मेरी, हम उनसे शिकायत करते हैं
कहीं खुद पे न इतराने लगूं, इसलिये वो शायद डरते हैं।
बेशक लब उनके कुछ न कहें
नजरें तो बयां कर जाती हैं
जो ठहरी थी मेरे झुमके पर
चाहत वो जताकर जाती हैं
बस इसलिये तो हम हरदम, बनते और संवरते हैं
कहीं खुद पे न इतराने लगूं ,इसलिये वो शायद डरते हैं।
कभी बालों की कोई लट
आ जाती मेरे माथे पर
उसे कान के पीछे करके वो
देखा करते रुक के पल भर
उस पल में मानो हम अपनी, सौ उम्र बिताया करते हैं
कहीं खुद पे न इतराने लगूं, इसलिये वो शायद डरते हैं।
कोई जाकर उनको कह दे ज़रा,
कुछ लिख ही दें, कोरे काग़ज़ पर
मेरी सूरत पे, मेरी बातों पे
लिखें शायरी कोई या कोई ग़ज़ल
जाने क्यूं यूं खामोशी से, इज़हार-ए-मोहब्बत करते हैं
कहीं खुद पे न इतराने लगूं, इसलिए वो शायद डरते हैं।