मैं भारत की वो नारी हूँ
मैं भारत की वो नारी हूँ
कोई साधारण स्त्री न समझ,दहकती हुई चिंगारी हूँ
जो मान पे अपने मर मिटती,मैं भारत की वो नारी हूँ
जिस देश धरा पर जन्म लिया,मैं ऋण उसका चुकाऊंगी
हो प्रश्न देश की स्मिता का,मैं सिंहनी भी बन जाऊँगी
सादर शांति की है अभिलाषा ,पर मत समझो मैं हारी हूँ
जो मान पे अपने मर मिटती,मैं भारत की वो नारी हूँ
शौर्य लहू में बह रहा,वीरांगनाओं की संतति हूँ
मैं लक्ष्मीबाई,मैं दुर्गावती और मैं ही रानी अवंति हूँ
महाप्रलय आ जाता जब-जब, रण में चरण उतारी हूँ
जो मान पे अपने मर मिटती, मैं भारत की वो नारी हूँ
जब हम साहस से बढ़ते, हिमगिरि भी शीश झुकाता है
मेरी भारत माँ के जयघोष को,अम्बर भी दोहराता है
माथे पे क्रांति का तिलक लगा,मातृभूमि पर बलिहारी हूँ
जो मान पे अपने मर मिटती, मैं भारत की वो नारी हूँ.