प्रीत का बंधन
प्रीत का बंधन
तेरा मेरा कैसा नाता, कुछ और न कभी सुहाता।
सोचती हूँ क्या है ये बंधन,प्रीत मिलन सा ये है नाता।।
जीवन के हर पथ पर प्यारे,तू मेरे संग संग मुस्काता।
न कुछ आता,पर गीत बन जाता,ये ऐसा है प्यारा नाता।।
कोई कहे इसे इश्क़ का बंधन,कोई कहे प्रीत का नाता।
शब्दो के संग पिरो पिरो कर,गीत नित नूतन बन जाता।।
तू तो प्रियतम है मेरा,अटूट से है तेरा मेरा नाता।
संग तू होता या न होता,मन मे सदा तू ही मुस्काता।।
ऐसा नाता,प्यारा नाता,रूह से रूह तक जो जुड़ जाता।
कहते हैं लोग इसे सब,प्रीत के बंधन का ही नाता।।