खामोशियाँ
खामोशियाँ
खामोशियाँ तुम्हारी हमारी
हमें कुछ कह रही थीं
गुनगुना रही थीं
कुछ सुना रही थी
कुछ बता रही थीं
क्या कह रही थीं
इनकी भाषा को पढ़ना, सुनना, जानना
हमारे लिए कुछ मुश्किल था
बस हम उन्हे समझ पाते,
सुन पाते, जान पाते
ये प्यार की पराकाष्ठा थी
या हमारी चाहत थी
हमारे प्यार का इजहार था
या इंकार था
कुछ हम समझ पाते
कुछ तुम समझाते
यही कश्मकश दे गई थीं
ये खामोशियाँ
इनका जवाब कोई ना तब था ना अब हे
क्या क्या कर गई खामोशियाँ
ये खामोशियाँ ना होती तो
तुम तुम ना होते हम हम ना होते
एक दूजे के हमसफऱ हम तुम भी होते।