दरमियाँ के
दरमियाँ के
हमें गिला ये नहीं के
आपको हम हर वक्त
याद आते नहीं
हमें तो गिला ये है के
आपको हम इक पल भी
भुला पाते नहीं
हमें गम ये भी नहीं के
आपको हम ये हालात
समझा पाते नहीं
हमें तो गम ये हैं के
आपको हम दिलों दिमाग़ से
उतार पाते नहीं
हुई ऐसी भी क्या ख़ता
के ख़फा हो गए हो
इस क़दर हम से
एक बारी तो दो जता
के ये ज़फा सही न जाए
इस बार हम से
बतला भी दो अब पता
के आँखें मूंद चल पड़ेंगे
उस रास्ते से
हैं क्या जो रहा है सता
के दफ़ा हो न पाए
ये बेरुख़ी हम से
हुई कहाँ गुम हँसी बता
के नजरें चुराते फिरते हो
यूँ सब से
हैं चेहरे का नूर लापता
के ये क्या छुपाते रहते हो
जमाने भर से
ना होता होश का अता-पता
के बात-बात पर बिगड़ जाते हो
हर किसी से
क्यूँ दिल को रहे हो सता
के क्या हासिल कर लोगे
ऐसे बदल-बदल के ख़ुद से