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Sujit kumar

Romance

4  

Sujit kumar

Romance

प्रेम

प्रेम

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मैं उससे लड़ता हूँ,

की थोड़ी सी ख़ामोशी तो हो,

तुझे सोच सकूँ किसी नज्म की तरह,

और तुझसे कहूँ तू खूबसूरत है शब्दों सी !


अल्लहड़ जैसे हरदम बोलना,

जैसे हवा आयी हो खिड़की से

और मेज पर से सारे पर्चे उड़ा गयी !


हरदम जिद और जिरह की बातें,

जैसे कोई शरारती बच्चा हो,

माँ की हर बातें दुहरा रहा हो !


नकारना प्यार की बातें,

और हाथ छूने पर झिरक देना,

जैसे लाज से नहायी हुई स्त्री,

कुछ दूर जाके खड़ी हो गयी !


ऐसे कभी देखा नहीं तुम्हें संगीन होते,

हाँ कभी कभार पूछते हो प्रेम क्या है ?


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