तुम आना फिर ..
तुम आना फिर ..
तुम आना फिर ..
पहली दफा जैसे अजनबी के तरह,
पूछना सकुचाते हुए नाम और शहर।
कुछ दिन करना बातें अनमने ढंग से,
सुबह शाम छोटे छोटे शब्दों में,
खत्म करना रोज की बातें।
फिर कुछ दिन यूँ ही चुप हो जाना,
जैसे कोई अनजाना सा मुसाफिर,
छूट जाता है राहों में।
कभी उदासी में करना घंटों बातें,
और फिर भर देना अपनी आदत,
जेहन में।
डूब कर पढ़ना फिर नज्मों को मेरे,
पूछना किसके लिए लिखा ?
और बाँध देना झूठी तारीफों के पुल।
वहम भरना मेरे शब्दों में कैद हो,
लेकिन रहना तुम आजाद पंछी बन,
और उड़ जाना किसी दिन।
खामोशी के साथी से मिलने ,
तुम आना फिर … ।।

